Header Ads

Header ADS

Unique Village in UP Vrindavan : देखिये यूपी का मन मोहने वाला सुन्दर गांव (टटिया) , तपस्या के लिए आते हैं साधु-संत

भागती दौड़ती ज़िन्दगी से  बिल्कुल अलग है ये जगह ...इस स्थान पर न शोर-शराबा है और न ही भीड़भाड़। यह स्थान तकनीकी प्रगति से अछूता है पर पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता के काफी करीब है। खुद को आराम देने और मन की शांति और सुकून के लिए लोग इस स्थान पर आना पसंद करते हैं।



हमारा देश विज्ञान और तकनीक की ओर बढ़ रहा है। सिर्फ अपनी उंगलियों से हम दुनियाभर से संपर्क साथ सकते हैं। बिजली-पानी से अधिक अब हम एआई युग में प्रवेश कर चुके हैं। कैशलेस दौर में फोन के जरिए हर सुविधा मिल सकती है। ऐसे में बिना फोन रहना और तकनीक से बिल्कुल अछूता रहना बहुत मुश्किल सा लगता है।

लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में एक ऐसी जगह भी है, जो बिजली, मोबाइल, तकनीकी चीजों से बहुत दूर है। तेजी से बढ़ रही दुनिया से बिल्कुल अलग इस स्थान पर न शोर-शराबा है और न ही भीड़भाड़। यह स्थान तकनीकी प्रगति से अछूता है पर पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता के काफी करीब है। मन की शांति और सुकून के लिए लोग इस स्थान पर आना पसंद करते हैं। आइए जानते हैं भारत के ऐसे गांव के बारे में।


कहां है टटिया गांव

टटिया गांव


उत्तर प्रदेश में स्थित वृंदावन शहर धार्मिक स्थल के रूप में मशहूर है। वृंदावन का छोटा सा टटिया गांव सुकून और शांति का अहसास कराता है। इस गांव के लोग शोर-शराबे, तकनीक, मशीन और बिजली के उपयोग से बिल्कुल दूर हैं।



टटिया गांव का इतिहास गांव से जुड़ा इतिहास काफी रोचक है। सातवें आचार्य स्वामी ललित किशोरी देव जी निधिवन छोड़कर एक निर्जल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाने का फैसला लिया। आचार्य जी के लिए इस जगह को सुरक्षित बनाने के लिए बांस के डंडे का उपयोग करते हुए पूरे इलाके को घेर लिया गया। स्थानीय भाषा में बांस की छड़ियों को टटिया कहते हैं। 



ऐसे में गांव का नाम टटिया पड़ा। इसी स्थान पर साधु-संत संसार से अलग होकर ठाकुर जी की आराधना में लीन होने के लिए आते हैं। इस गांव में आकर लगेगा कि कई शताब्दियों पीछे चले गए हैं, जहां बाहरी दुनिया से कोई मोह या संपर्क नहीं होता। टटिया गांव का खासियत गांव काफी हरा-भरा है। यहां अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे लगे हैं। हर पेड़ देवताओं को समर्पित है।



 मान्यता है कि पेड़ों के पत्तों पर राधा नाम उभरा हुआ होता है। सबसे अधिक नीम, पीपल और कदंब के पेड़ हैं। इस आध्यात्मिक स्थान पर लोग पूजा या आरती नहीं करते हैं। हालांकि यहां लोग एकत्र होकर राधा कृष्ण के भजन गाते हैं। इस गांव में आज भी कुएं का पानी पिया जाता है। साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है। इस गांव में बहुत सारे साधु संत आते हैं लेकिन कोई भी दान दक्षिणा नहीं लेता और न ही कोई दान पेटी यहां रखी गई है। 



अगर आप यहां आना चाहते हैं तो याद रखें कि फोन लेकर आने की पाबंदी है। इसके अलावा किसी तरह के आधुनिक उपकरण का उपयोग इस गांव में करने की मनाही है। वहीं महिलाओं को सिर ढककर ही प्रवेश की अनुमति होती है।

No comments

Powered by Blogger.